संस्करण: |
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क्या
नाथम्
चुन्दूर के
रास्ते चलेगा
?
अगर
हम लड़ते नहीं
जाते
तो
दुश्मन अपनी
संगीनों से
हमें खत्म कर
डालेगा
और
हमारी
हड्डियों की
ओर इशारा
करके कहेगा
देखा,
यह गुलामों
की हड्डियां
हैं,
गुलामों
की ?
सुभाष
गाताड़े |
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गुजरात चुनाव की बेला में भाजपा में जूतम-पैजार
?
एल.एस.हरदेनिया |
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मध्यप्रदेश
में बच्चों
से सर्वाधिक
भेदभाव
?
अमिताभ
पाण्डेय |
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उ.प्र. में घोषणाओं पर अमल नहीं, खानापूरी उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिस तरह अपनी चुनावी घोषणाओं को पूरा कर रहे हैं, उससे लोगों में निराशा और क्षोभ है। यह सच है कि उन्होंने शपथ ग्रहण करते ही घोषणाओं पर अमल करने की अपनी प्रतिबध्दता जाहिर कर दी थी लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद शायद उन्हें समझ में आया होगा कि घोषणाओं के पिटारे का पेट भरना इतना आसान नहीं है। यही कारण है कि जिन घोषणाओें पर अमल हो भी रहा है, वह राहतकारी न होकर, खानापूरी भर रह गया है। ?
सुनील
अमर |
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जो
लोग झूठ के
हथियारों से
लड़ाई लड़ते
हैं, उन्हें
पराजय के साथ
शर्मिन्दगी
भी झेलेना
पड़ती है।
कसाब को
फाँसी के बाद
भाजपा की
हालत कुछ ऐसी
ही हो गयी
है। दर असल भाजपा के पास हमेशा से ही राजनैतिक मुद्दों का अभाव रहा है और वह अपने जनसंघ स्वरूप के समय से ही ऐसे मुद्दों का सहारा लेती रही है जो परम्परावादी लोगों के बीच भावुकता भड़का कर चुनाव जीतने वाले मुद्दे थे और जिनका जनहित से दूर दूर का भी नाता नहीं रहा। 1967 में उन्होंने गौहत्या विरोध के नाम पर साधुओं के भेष में रहने वाले भिक्षुकों को एकत्रित करके संसद पर हमला करवा दिया था, ?
वीरेन्द्र
जैन |
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राजनैतिक
समझ से दूर है
कतिपय
राजनैतिक दल राजनैतिक
शुचिता की
चिंता है
सिर्फ
कांग्रेस को
अपने
आगे की बड़ी
लकीर को
मिटाकर अपनी
छोटी लकीर को
बड़ा दिखाने
की फितरत को
ही कतिपय
राजनैतिक दल
अपनी योग्यता
प्रदर्शित
करने में
माहिर हो गये
हैं। स्वयं
तो जनहित या
सेवा के
कार्यों को
अंजाम देने
की क्षमता
नहीं रखते
किंतु दूसरा
दल यदि अपनी
नीतियों और
सिध्दांतों
पर चलकर समाज
में कोई
आदर्श पेश
करता है तो
उसपर तर्क-कुतर्क
करते हुए उस
दल से जुड़े
नेताओं की
मज़ाक उड़ाना
उन पर भद्दी
टिप्पणियां
करना और
हुड़दंग मचाकर
समाज में
कनफ्यूजन
फैलाकर
तालियां
पिटवाने को
ही राजनीति
समझ लेते
हैं। कतिपय
ऐसी राजनैतिक
पार्टियां जो
अस्तित्व में
हैं या नई-नई
गठित होती जा
रही हैं, उनकी
फितरत यदि
देखी जाय तो
यही समझ में
आता है कि
उन्हें न तो
समाज सेवा से
कोई मतलब है
और न ही उनमें
देश की
अस्मिता के
प्रति कोई
सम्मान की
भावना है।
?
राजेन्द्र
जोशी |
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केंद्रीय
मंत्री मण्डल
ने नई दवा
नीति को
मंजूरी दी भारत सरकार अब आम आदमी के स्वास्थ्य की चिंता के मद्देनजर अनूठी, जरुरी व कड़ी पहल करती दिखाई दे रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के सभी सरकारी अस्पतालों में मुत जेनेरिक दवाएं दी जाने की शुरुआत की है। अब इसी दिश में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय मंत्रीमण्डल ने सभी आवश्यक दवाओं की कीमतें 20 फीसदी तक घटाने का अभूतपूर्व निर्णय लिया है। इनमें कैंसर व एड्स जैसी जानलेवा बीमारियों के अलावा अवसाद दूर करने और ताकत में इजाफा करने वाली दवाएं भी शामिल हैं। ?
प्रमोद
भार्गव |
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मध्यप्रदेश
में उच्च
शिक्षा का यह
कैसा
गुणवत्ता
विस्तार वर्ष
? वैसे तो पूरे देश में शिक्षा की बदहाली चिंता का विषय है। लेकिन मध्यप्रदेश में चूंकि यह उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का विस्तार वर्ष घोषित किया गया है अतएव इस पर मंथन आवश्यक है। शिक्षा जीवन की बुनियाद होती है। वह विद्यार्थियों के अस्तित्व का निर्माण करती है, जिसपर समूचे राष्ट्र का भविष्य अवलंबित होता है। अतएव शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना अनिवार्य है। लेकिन शिक्षा में गुणवत्ता आएगी कैसे ? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है।
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डॉ.
गीता गुप्त |
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स्वास्थ्य
के मानकों पर
लड़ाई हारना
खुली
अर्थव्यवस्था,
बाजारवाद और
नव
उपभोक्तावाद
की चकाचौंध
में कई
मूलभूत
समस्याएं
सरकारी
फाइलों में,
नेताओं के
झूठे वादों
में और समाज
के बदलते
दृष्टिकोण के
चलते दबकर रह
जाती हैं।
गरीबी, बदतर
स्वास्थ्य
सेवाएं और
अशिक्षा के
साथ-साथ
बच्चों का
बढ़ता कुपोषण
भारत में एक
बड़ी समस्या
है जिसका
निदान कहीं
नहीं दिखता।
हाल में ही
यूनिसेफ
द्वारा जारी
ताजा रिपोर्ट
में जो चित्र
सामने आया है,
वह भयावह है
और सभी के लिए
चिंता का सबब
होना चाहिए।
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राखी
रघुवंशी |
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इस कोरियन वीडियो सांग में आखिर ऐसा क्या है कि जिसे 80 करोड़ लोग निहार चुके हैं। यदि हम इसे अर्थहीन उन्माद का नया पता कहें,तो गलत न होगा। इस सांग में संगीत का माधुर्य नहीं है,शब्दार्थ की संवेदना नहीं है और न ही नृत्य का करंट है, जो कुछ भी आप करना नहीं चाहते, वैसा करते हैं, तो वह है गंगनम स्टाइल। यू टयूब पर प्रशंसकों की संख्या के रिकार्ड स्थापित करने वाले 'गंगनम शैली'वाले नृत्य के प्रशंसकों की संख्या लगातार बढ़ रही है.और इस सूची में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा, लंदन के मेयर, चीन के शीर्ष असंतुष्ट कलाकार एवं मडोना भी शामिल हो गए हैं।
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डॉ.
महेश परिमल |
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देशभर
में सबको
मुफ्त दवा
विश्व
बैंक के एक
अध्ययन के
अनुसार
म्यांमार व
बॉग्लादेश के
बाद भारत
तीसरा देश है
जो अपने
नागरिकों को
स्वास्थ्य
सेवाएॅ देने
में विफल रहा
है। प्रसिद्व
स्वास्थ्य
पत्रिका
लांसेट ने 2011
में प्रकाशित
एक अध्ययन
में बताया था
कि भारत में
बीमारी में
आने वाले
भारी भरकम
खर्च के कारण
हर साल 3.9करोड़
लोग गरीबी के
रेखा में
शामिल हो
जाते है।
वहीं
कार्पोरेट
मामलों के
मंत्रालय
द्वारा दवाओं
के संबंध में
कराए गए शोध
में पाया गया
है कि देश
विदेश की
जानी मानी
दवा कम्पनियॉ
भारत में 203से 1123फीसदी
तक मृनाफा
कमा रही है।
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डॉ.
सुनील शर्मा |
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क्या
बाला साहब के
निधन के बाद
शिवसेना
बचेगी? ठाकरे
बंधुओं की
कलह सेना के
लिए महंगी
साबित होगी बाल ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना का भविष्य क्या होगा? यह एक ऐसा सवाल है, जो पिछले 4 दशकों से पूछा जाता रहा है, पर आज यह सवाल सबसे ज्यादा प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि बाल ठाकरे अब वास्तव में नहीं रहे। बाला साहेब ने 1960 के दशक में सेना का गठन किया था और 1990 के आसपास इसका पूरे महाराष्ट्र में विस्तार किया और बाद में 1995 में भाजपा के सहयोगी से सेना की सरकार भी बनी।
?
हरिहर
स्वरूप |
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