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अरविन्द
केजरीवाल की
अजीब दास्तान.....
क्या
आप कह सकते है,
अरविन्द
केजरीवाल को
गुस्सा क्यों
आता है..... यहॉ उस
जुनूनी
व्यक्ति की
अंदर की
कहानी है जो
कठोर लोकपाल
बिल के पीछे
बड़ी भूमिका
में खड़ा है।
''एक
मुस्लिम और
दलित चेहरा
खोजो, हम
उन्हे मंच पर
लाना चाहते
है। बहुत
सारे
नकारात्मक
प्रचार से
निपटने की
आवश्यकता है।''रामलीला
मैदान पर जब
अन्ना हजारे
ने अपना अनशन
समाप्त किया
उसके पहले
अरविन्द
केजरीवाल ने
यह कहा। टीम
अन्ना के
अंदरूनी
लोगों ने
सूचना दी कि
किस प्रकार ......
?
सादिक
नकवी |
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मालेगांव
बम धमाके के
असली
मास्टरमाइंड
बम्बई
के आर्थर रोड
जेल के बाहर
पिछले दिनों
जश्न का
माहौल था जब
जेल की
सलाखों के
पीछे पांच
साल से बन्द
सात लोग बाहर
आए थे। और महज
जेल के बाहर
ही नहीं
बल्कि इन
बन्दियों के
अपने नगर
मालेगांव
में तो गोया
ईद-दिवाली
जैसा माहौल
था। वर्ष 2006
में
मालेगांव
में हुए बम
धमाके में
आरोपी बनाए
गए सात लोगों
को जमानत मिल
गयी थी।
राष्ट्रीय
जांच एजेंसी
ने अदालत के
सामने
प्रस्तुत बम
धमाके से
जुड़े अन्य
तथ्य रखे थे
और उनकी
जमानत का
विरोध नहीं
किया था।
?
सुभाष
गाताड़े |
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संघ
परिवार की
डूबती नैया
को बचाने की
कोशिश करते
सर संघचालक
?
एल.एस.हरदेनिया |
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उत्तर
प्रदेश विशेष
मायावती का
निर्णय
हताशापूर्ण
कदम है केन्द्र
को एक
पुनर्गठन
आयोग गठित
करना चाहिए पचपन साल पहले बने राज्य पुनर्गठन आयोग के ज्यादा सदस्य उत्तर प्रदेश को विभाजित करने के पक्ष में थे। तब उस समय केन्द्रीय गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने कहा था कि उत्तर प्रदेश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि कोई भी इस राम और रहीम की भूमि का विभाजन नहीं कर सकता। लेकिन पुनर्गठन आयोग के एक महत्वपूर्ण सदस्य के एम पण्णिकर साफ साफ शब्दों में अपनी राय लिखी थी कि विभाजन के लिए उत्तर प्रदेश का मामला सबसे ज्यादा उचित है। ?
हरिहर
स्वरूप |
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उ.प्र. में इस बार क्या होंगें चुनावी मुद्दे बीते
पखवारे
मुख्यमंत्री
मायावती ने
दो राजनीतिक
कार्यक्रम
करके प्रदेश
में मानो
चुनावी जंग
का बिगुल ही
बजा दिया। एक
कार्यक्रम
उन्होंने
ब्राह्मण
सम्मेलन का
किया और
दूसरा इस
महाकाय
प्रदेश को
चार हिस्सों
में बॉटने
का। यह दूसरा
कार्यक्रम तो
राजनीतिक
विस्फोट जैसा
ही रहा।
उत्तर प्रदेश
को बॉटने की
मॉग नयी नहीं
है लेकिन जिस
तरह मौजूदा
सरकार ने
सिर्फ 16मिनट
चली विधान
सभा में आनन-फानन
इसका
प्रस्ताव
पेशकर
विपक्षी दलों
के भारी शोर-शराबे
के बीचइसे
पास भी करा
लिया वह
आश्चर्यजनक
ही रहा। यह
इतना
अप्रत्याशित
था कि साफ-साफ
शब्दों में
कहें तो
विपक्षी दलों
खासकर सपा और
भाजपा के
हाथों के
तोते उड़ गये। ?
सुनील
अमर |
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ग्रामीण
रोजगार
गारंटी योजना
के खिलाफ नामी अमरीकी अखबार, वाशिंगटन पोस्ट में आज एक दिलचस्प खबर छपी है । लिखा है कि भारत सरकार के ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कारण औद्योगिक सेक्टर को अब जरूरी मजदूर नहीं मिल रहे हैं । पंजाब और महाराष्ट्र में दूर गाँव से आकर मजदूरी करने वाले लोग नहीं पंहुच रहे हैं इसलिये औद्योगिक इस्तेमाल के लिए गन्ना भी मिलों तक नहीं पंहुच रहा है। बताया गया है कि अखबार के रिपोर्टरों ने देहातों में घूम घूम कररोजगार गारंटी योजना ( नरेगा ) में काम करने वाले जिन मजदूरों से बात की, उन्होंने बताया कि यह काम उन्हें दो जून की रोटी तो देता ही है ,सम्मान के साथ अपनी ही जमीन पर रह कर जीने का अवसर भी देता है।
?
शेष
नारायण सिंह |
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सत्ता
का दुरूपयोग
कर अपनी
तिज़ोरियां
कैसे भरी
जाती हैं, यह
मध्यप्रदेश
में स्पष्ट
दिखाई दे रहा
है। प्रदेश
की भाजपा
सरकार ने
अपने नेताओं
और उनके
रिश्तेदारों
को खनन की
खुली छूट दे
रखी है। तमाम
नियम-क़ानूनों
को दर किनार
कर भाजपायी
अवैध खनन में
लिप्त हैं और
समूचा
प्रशासन
तंत्र मूक
दर्शक बना
हुआ है। कभी
यही खनिज
संपदा
विदेशियों
द्वारा लूटी
जाती थी और
जनता पर
अत्याचार
किया जाता
था। आज देशी
लुटेरे इसे
लूटने में
लगे हैं और
पूरा मामला
प्रकाश में
आने के
बावजूद शासन-प्रशासन
असहाय बना
हुआ है। ?
महेश
बाग़ी |
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ब्रांड
में बदल गये
बच्चन परिवार
में बेबी
बच्चन की आमद
पिछले
दिनों फिल्मी
अभिनेता
अभिषेक-
एश्वर्या
दम्पत्ति के
यहाँ एक
पुत्री ने
जन्म लिया
है। यह
परिवार
चकाचौंध वाली
फिल्मी
दुनिया में
हिन्दी भाषी
क्षेत्र का
सबसे बड़ा
स्टार परिवार
है,जिसकी
लोकप्रियता
का प्रारम्भ
हिन्दी के
सुपरिचित कवि
डा.हरिवंश
राय बच्चन से
होता है।
किसी समय
इलाहाबाद न
केवल संयुक्त
प्रांत की
राजधानी ही
थी अपितु
लम्बे समय तक
वह हिन्दी
साहित्य की
राजधानी भी
मानी जाती
रही। वहाँ
स्वतंत्रता
संग्राम के
सबसे
लोकप्रिय
नेताओं में
से जवाहरलाल
नेहरू और
मोती लाल
नेहरू ही
नहीं रहे
अपितु अन्य
सैकड़ों
लोकप्रिय
राष्ट्रीय
नेताओं का
कार्यक्षेत्र
भी इलाहाबाद
रहा है।
?
वीरेन्द्र
जैन |
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समितियां
बनाओ, बैठकें
बुलाओ जनता
को मुगालते
में रखने का
बेहतर नुस्खा सरकारों
के हाथ बड़े
लम्बे होते
हैं। वे किसी
भी मुद्दे के
उठने के पहले
ही शांत कर
देना चाहती
हैं। कहीं से
भी घटना,
दुर्घटना,
शोषण या
अत्याचार की
खबरें आई
नहीं की उसकी
जांच का
इंतजाम कर
लिया जाता
है। सबसे
पहले तो
मामलों के
प्रकाश में
आते ही
जांचें बैठा
दी जाती है।
जाचों के भी
कई तरीके
होते हैं।
प्रशासनिक
जांच,
राजनैतिक
जांच,संसदीय
समितियों की
जांच या फिर
गणमान्य
नागरिकों की
समितियां
गठित कर उसके
माध्यम से
जांच। जांचे
किस तरह की हो,नई
समिति बनाकर
की जाय या
पुरानी बनी
बनाई
समितियों से
ही कराई जाय
यह प्रकरण की
गंभीरता के
आधार पर तय
किया जाता
है।
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राजेन्द्र
जोशी |
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गर्भपात
के अधिकार पर
बढ़ते खतरे आजकल अमेरिका में पर्सनहुड़ बिल की चर्चा काफी हो रही है। 'पर्सनहुड यूएसए' नामक ग्रुप की पहल पर इस सिलसिले में मिसिसिपी राज्य में एक बिल भी पेश किया गया था,जिसका सारतत्व था मां के गर्भ में बच्चे के भ्रूण के बनने के साथ ही उसे एक मनुष्य माना जाए तथा उस 'मनुष्य' के अधिकारों की रक्षा की जाय। स्पष्ट था कि इसका मकसद था वर्ष 1973 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले - रो बनाम वाड - जिसने गर्भपात को कानूनी दर्जा प्रदान किया था, उसे कानूनी चुनौती पेश की जाए। इसमें सिर्फ 40 फीसदी मतदाताओं ने इस पक्ष में वोट दिया।
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अंजलि
सिन्हा |
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